Gunjan Kamal

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उपनयन संस्कार

हिंदू धर्म के १६ संस्कारों में उपनयन संस्कार को १० वें संस्कार में स्थान दिया गया है। बहुत लोगों के मुंह से इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी सुना जा सकता है। प्राचीन संस्कृति में गुरु के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करने की परंपरा थी। गुरु के पास  ही लड़कों का उपनयन संस्कार कर दिया  जाता था। शायद यही वजह थी कि इससे उपनयन संस्कार का नाम दिया गया। उप यानी पानस अर्थात गुरु और नयन यानी ले जाना, अर्थात गुरु के पास ले जाना।


सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज वर्तमान में भी हिंदू धर्म के ब्राह्मण समाज में कायम है। जनेऊ में तीन सूत्र ( धागा ) जो ब्रह्मा विष्णु और महेश ( त्रिदेव )  देवताओं के प्रतीक माने जाते हैं, को जब जनेऊधारी उपनयन संस्कार के दौरान  धारण करता है तो ऐसा माना जाता है कि उसे ऊर्जा, बल और तेज की प्राप्ति होती है।


शास्त्रों की मानों तो प्राचीन काल में उपनयन  संस्कार ब्राह्मण वर्ण ( जाति )  के जातकों का आठवें वर्ष में, क्षत्रिय जातकों का ग्यारहवें और वैश्य जातकों का बारहवें वर्ष में किया जाता था। शूद्र वर्ण व कन्याओं का यह संस्कार नहीं होता था क्योंकि ये इस संस्कार के अधिकारी नहीं माने जाते थे। अभी भी यह परंपरा निभाई जाती है।


ब्राह्मण वर्ण में तो क्या माना जाता है कि जनेऊ संस्कार के दौरान ही शादी की रस्में की आधी रस्में करा दी जाती है। इस वर्ण  की लड़कियों में जनेऊ वर्जित नहीं है इस कारण इनकी शादी की रस्में इनकी शादी के दौरान ही की जाती रही है लेकिन लड़के जिनका जनेऊ धारण करना अनिवार्य माना जाता है, के शादी की रस्में आदि इनकी जनेऊ में ही करा दी जाती है।


उपनयन संस्कार जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से वर्तमान समय में जाना जाता है, भी शादी की तरह ही त्यौहार के रूप में मनाया जाता है और  इसकी भी तैयारी महीनों से शुरू हो जाती है। शादी की तरह ही इसमें पंडाल बनाया जाता है, नाते - रिश्तेदारों को बुलाया जाता है एवं सदियों से चली आ रही परंपराओं को  निभाया जाता हैं।  लोग बढ़-चढ़कर उपनयन संस्कार का हिस्सा बनते हैं। हिंदू धर्म में जहां लड़के और लड़कियों की शादी रात में होती है वहीं पर लड़कों का जनेऊ दिन में ही संपन्न कराया जाता है।


उपनयन संस्कार में आचार्य और पंडितों को विशेष आदर के साथ इसे कराने के लिए बुलाया जाता है। वरिष्ठ आचार्य ही लड़के को जनेऊ धारण करवाते हैं। घर के वरिष्ठ जैसे कि दादा-नाना- चाचा आदि द्वारा आचार्य  लड़के को  मंत्रोचार द्वारा जनेऊ धारण करवाते हैं। पांच दिनों तक चलने वाला यह जनेऊ! जिस दिन जनेऊ धारण करने का दिन आचार्य द्वारा तय किया गया रहता है उस दिन पूरे दिन उपनयन संस्कार की रस्में चलती रहती है।


उपनयन संस्कार के दिन लड़के को नमक खाना वर्जित रहता है, उस दिन जनेऊ धारण करने वाला लड़का जनेऊ धारण करने से पूर्व फलाहार ही करता है। आचार्य  मंत्रोचार द्वारा जनेऊ धारण करवाने के बाद ही लड़के को नमकयुक्त खाना दिया जाता है। हर्षोल्लास के बीच मनाया जाने वाला यह जनेऊ संस्कार एक त्यौहार की तरह हर माता-पिता और उनसे जुड़े नाते - रिश्तेदार सदियों से मनाते चले आ रहे हैं और आज भी मना रहे हैं और यह परंपरा आगे भी मनाई जाएगी।


आगे भी रीति- रिवाज और त्योहारों के अगले भाग में हमारी संस्कृति के साथ ऐसे ही  मुलाकात होती रहेगी।

                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💓

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3 Comments

Mahendra Bhatt

11-Dec-2022 09:41 AM

बहुत ही सुन्दर

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Pranali shrivastava

10-Dec-2022 09:21 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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shweta soni

09-Dec-2022 07:45 PM

बहुत सुंदर 👌👌

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